करीब मेरे मगर खुद के
आस पास हो तुम
लहकती बुझती हुई आग
की उजास हो तुम |
चहकते गाते परिंदे की
ख़ामोशी हो तुम
खिली सुबह की तरह –
शाम की उदासी हो तुम |
हजार चुप से घिरी
हलचलों के घेरे में
रुकी रुकी सी हिचकती सी
कोई सांस हो तुम |
कभी निगाह की हद में
कभी हद से बाहर हो
कभी यकीन में ढलती
कभी कयाश हो तुम |
बने नही की टूट जाये
एक बुत जैसे
इतनी आम इतनी आम इतनी
खास हो तुम |
तेरी नींद की जरूरत
मेरे ख्वाब का बहाना
मेरा धीमे धीमे चलना
तेरा हौले हौले आना |
मासूम हसरतों क आये
में पल रहा है
तेरा लहर-सा मचलना
मेरा तट-सा थरथराना |
ये तुम्हारी
मुस्कराहट अभी दिल में घुल रही है
जरा देर यूं ही रहना जरा थम के मुस्कराना |
ये किसी की आरजू है,
जो भटक रही है गुमसुम
अभी बेखुदी में है, वो
आवाज़ मत लगाना |
कहीं धूप के उजाले कहीं शाम की स्याही
कभी सुर्ख शोख सुबहें
कभी शाम कातिलाना |
आबाद होगी इनसे
तनहाइयों की दुनिया
ये गजल है, मुकम्मिल
इसे त्तुम भी गुनगुनाना |
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