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Showing posts from 2017

Nirbhay Raj Mishra

Nirbhay Raj Mishra

Nirbhay Raj Mishra

मैं कब तन्हा हुआ था याद होगा तुम्हारा फैसला था याद होगा बहुत से उजले उजले फूल लेकर कोई तुमसे मिला था याद होगा बिछी थी हर तरफ आँखें ही आँखें कोई आँसू गिरा था याद होगा उदासी और बढ़ती जा रही थी वो चेहरा बुझ रहा था याद होगा वो ख़त पागल हवा के आँचलों पर किसे तुमने लिखा था याद होगा 

Nirbhay Raj Mishra

दिल में एक लहर सी उठी है अभी कोई ताजा हवा चली है अभी शोर बरपा है खाना-ए-दिल में कोई दीवार सी गिरी है अभी कुछ तो नाजुक मिजाज़ हैं हम भी और ये चोट भी नयी है अभी भरी दुनिया में जी नही लगता जाने किस चीज की कमी है अभी तू शरीक-ए-सुखन नहीं है तो क्या हम-सुखन तेरी खामोशी है अभी याद के बे-निशां जंजीरों से तेरी आवाज़ आ रही है अभी शहर की बेचिराग गलियों में जिन्दगी तुझको ढूँढती है अभी वक्त अच्छा भी आएगा गम ना कर जिन्दगी पड़ी है अभी 

Nirbhay Raj Mishra

आँसुओं की जहाँ पायमाली रही ऐसी बस्ती चिरागों से खाली रही दुश्मनों की तरह उस से लड़ते रहे अपनी चाहत भी कितनी निराली रही जब कभी भी तुम्हारा ख्याल आ गया फिर कई रोज़ तक बेख्याली रही लब तरसते रहे इक हंसी के लिए मेरी कश्ती मुसाफिर से खाली रही चाँद तारे सभी हम-सफ़र थे मगर जिन्दगी रात थी रात काली रही मेरे सीने पे खुश्बू ने सर रख दिया मेरी बाँहों में फूलों की डाली रही 

Nirbhay Raj Mishra

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Khud ko is dil me bsane urdu poem uploaded by Nirbhay Raj Mishra

Nirbhay Raj Mishra

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जिन्दगी में ऐसे मौके रोज नही आते हैं हम ऐसे लोग नहीं रिश्ते तोड़ जाते हैं कभी न कभी तो तुम कहीं पे मिलोगे ही जिन्दगी में ऐसे यार छूट नहीं जाते हैं

Nirbhay Raj Mishra

बहुत खोया बहुत रोया किसी का ही नहीं पाया सभी उन्माद में रहते मगर मैं सो नही पाया अजब सी उलझने हैं अब भी जब साथ में हो तुम नफरत जिससे करता था उसे मैं खो नहीं पाया 

मन की हार

                    मन की हार ये मैं चंचल है बहुत बड़ा , पर समक्ष सभी के यही खड़ा मन को वश में जो कर जाये , जीवन में वो कुछ कर जाये मन पर जिसका अधिकार हुआ , भव सागर वो पार हुआ मैं इसका एक शिकार हुआ , एक बार नहीं दो बार हुआ एक बार मैं फिर से हार गया .......... समझा जिसको अपनी मंजिल , वो निकला न कोई शाहिल वो निकली एक ऐसी धार , जिससे हुआ मैं तार तार जान के उसको जान ना पाए , समझा तो समाधान ना आया लिख डाली एक पाती तब , पर मैंने ये सोचा था कब वो मेरे लिए एक रार हुआ एक बार मैं फिर से हार गया ......... दो साल हुए थे इसको , पर मैं समझा ना पाया उसको फिर एक दिन ऐसा आया , कालेज में विज्ञान समाया वह नयी कुछ बात हुई , अन्दर अन्दर कुछ बात हुई आखों ने फिर प्रलय किया , नयनों का अश्रु से मिलन हुआ फिर आगे से एक वार हुआ एक बार मैं फिर से हार गया ............. गलती थी मेरी मैं शांत रहा, प्रमाण जो उनके हाथ हुआ वो प्रमाण मेरी पाती थी , जो केवल स्वार्थ दिखाती थी फिर अश्रुओं की जलधार बही माना मैंने की...

Nirbhay Raj Mishra

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मित्रता बढ़ी न बढ़ी और द्वेष बढ़ गया गीत  उनके गुनगुनाते मैं तो आगे बढ़ गया वो समझ सके ना हमें, और हमारे मान को खुद को ही असत्य मान मैं तो सूली चढ़ गया