आँसुओं की जहाँ पायमाली रही
ऐसी बस्ती चिरागों से खाली रही
दुश्मनों की तरह उस से लड़ते रहे
अपनी चाहत भी कितनी निराली रही
जब कभी भी तुम्हारा ख्याल आ गया
फिर कई रोज़ तक बेख्याली रही
लब तरसते रहे इक हंसी के लिए
मेरी कश्ती मुसाफिर से खाली रही
चाँद तारे सभी हम-सफ़र थे मगर
जिन्दगी रात थी रात काली रही
मेरे सीने पे खुश्बू ने सर रख दिया
मेरी बाँहों में फूलों की डाली रही
Comments
Post a Comment