दिल में एक लहर सी उठी है अभी
कोई ताजा हवा चली है अभी
शोर बरपा है खाना-ए-दिल में
कोई दीवार सी गिरी है अभी
कुछ तो नाजुक मिजाज़ हैं हम भी
और ये चोट भी नयी है अभी
भरी दुनिया में जी नही लगता
जाने किस चीज की कमी है अभी
जाने किस चीज की कमी है अभी
तू शरीक-ए-सुखन नहीं है तो क्या
हम-सुखन तेरी खामोशी है अभी
याद के बे-निशां जंजीरों से
तेरी आवाज़ आ रही है अभी
शहर की बेचिराग गलियों में
जिन्दगी तुझको ढूँढती है अभी
वक्त अच्छा भी आएगा
गम ना कर जिन्दगी पड़ी है अभी
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